lukkhe, this word has been following me all through my life and now finally when i am starting a new life of my own i am unable to shed this identity.i think this word has become a part and parcel of my life my identity.
presently i am in bangalore and i had many dreams when i cam to this city,it was considered to b the best place for the lukkhe's like me.but now the dream has shattered the place for lukkhe's is their own frnds wthout whom this world is gonna be a total mess nothing else
Wednesday, 4 June 2008
काफ़ी दीन beet गए कुछ लीखा नही सोचा की आज इस आवारा ज़िंदगी को एक और पन्ना दे दे। यूं तोःबहुत कुछ है बताने क लिए पर इस लुक्खे की सुनता कौन है। फ़ीर से दोस्तो की इन्यात सहेज रहा हूँ, पता नही ये एहसान कब पुरा कर पाउँगा, वैसे दोस्ती क नाम पर एक शेर अर्ज़ है ,
इनके बिना है एक बंजर रेगिस्तान ज़िंदगी
साथ अगर हैं तोः फ़ीर फासला क्यों है।
अलवीदा
इनके बिना है एक बंजर रेगिस्तान ज़िंदगी
साथ अगर हैं तोः फ़ीर फासला क्यों है।
अलवीदा
Subscribe to:
Posts (Atom)